The Indian Penal Code (IPC), enacted in 1860, forms the backbone of criminal law in India. Among its myriad provisions, IPC 323 holds particular relevance to everyday legal disputes and the principle of individual protection. IPC 323 addresses the punishment for voluntarily causing hurt — a clause that impacts countless cases, from neighborhood disagreements to larger civil disturbances. For many Indians seeking justice or self-defense within the legal system, understanding Section 323 is crucial. In recent years, greater legal awareness and increased access to Hindi legal resources have empowered citizens to engage more meaningfully with this statute.
IPC 323, जिसे हिंदी में अभियुक्त के जान-बूझकर “साधारण चोट पहुँचाने” पर दंड देने का प्रावधान है, आमतौर पर मारपीट के मामलों में लगाया जाता है। यह धारा बताती है कि कोई भी व्यक्ति, जो जानबूझकर दूसरे व्यक्ति को चोट पहुँचाता है, उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित किया जा सकता है।
“IPC 323 serves as a foundational provision to deter acts of violence at the most basic level by ensuring legal consequences for causing even minor injuries.”
— Advocate Prashant Tiwari, High Court of Judicature at Allahabad
ध्यान देने वाली बात है कि “hurt” (चोट) की परिभाषा भारतीय दंड संहिता की धारा 319 के अंतर्गत आती है, जिसमें वह शारीरिक दर्द, बीमारी, या कोई ऐसी अवस्था शामिल है, जिससे व्यक्ति की सामान्य गतिविधियों में बाधा आती है।
धारा 323 आमतौर पर तब लगती है जब चोट धार्मिक, जातिगत या सामाजिक आधार पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत विवादों या छोटी झड़पों के दौरान पहुंचाई जाती है। यह संज्ञेय (cognizable) अपराध नहीं है, यानी इसके लिए गिरफ्तारी पुलिस वारंट के बिना नहीं कर सकती।
IPC 323 के तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम एक वर्ष की साधारण कैद या एक हजार रुपये तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। सजा के निर्धारण में निम्नलिखित बातें कोर्ट देखती है:
न्यायालय आमतौर पर आरोपी के आचरण, सामाजिक पृष्ठभूमि, और पीड़ित की स्थिति को ध्यान में रखता है। उदाहरण के लिए, यदि चोट गंभीर है या दोहराव हुआ है, तो अधिकतम सजा दी जा सकती है। दूसरी ओर, गलती से या उत्तेजना में की गई चोट के मामलों में अदालत सजा में नरमी बरत सकती है।
वाराणसी में 2021 में एक घरेलू विवाद के दौरान हुई झड़प में आरोपी पर IPC 323 के तहत कार्रवाई हुई। अदालत ने परिस्थियों को देखते हुए मुख्य आरोपी को जुर्माना भरकर छोड़ने का आदेश दिया, जबकि दोहराव के मामले में आरोपी को तीन माह की सजा सुनाई गई।
IPC 323 के अंतर्गत मामला दर्ज करना अपेक्षाकृत सीधा है। यदि कोई पीड़ित पुलिस थाने में शिकायत (FIR) दर्ज कराता है, तो पुलिस इसकी जांच शुरू करती है। यह अपराध अदालती संज्ञान (non-cognizable) के अंतर्गत आता है, यानी पुलिस खुद गिरफ्तारी नहीं कर सकती, बल्कि कोर्ट के निर्देश पर आगे बढ़ती है।
धारा 323 के तहत अपराध जमानती (bailable) और अदालती सुनवाई योग्य (triable by any magistrate) है। अधिकतर मामलों में आरोपी को तुरंत या नोटिस पर जमानत मिल जाती है, जिससे अनावश्यक हिरासत से बचाव संभव है।
“Because IPC 323 is bailable and non-cognizable, the accused person’s liberty is usually protected pending trial, except in rare aggravated scenarios.”
— Advocate Megha Sharma, District Court, Delhi
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि साधारण चोट के मामलों में कभी-कभी IPC 323 का दुरुपयोग भी होता है — खासकर पारिवारिक या संपत्ति विवादों में, जहाँ झूठे केस बना दिए जाते हैं। अदालतें इस तरह के दुरुपयोग के प्रति सतर्क रहती हैं.
इसके विपरीत, IPC 323 ने कमजोर वर्गों और महिलाओं को कानूनी संरक्षण प्रदान किया है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पुलिस द्वारा अपनी रिपोर्टिंग में इस धारा का उचित इस्तेमाल समाज में कानून का डर और व्यवस्था दोनों स्थापित करता है।
लखनऊ में एक घरेलू हिंसा मामले में पीड़िता ने IPC 323 में प्राथमिकी दर्ज करवाकर आरोपी को न्यायालय की प्रक्रिया में लाने में सफलता पाई। नतीजतन, समाजिक संस्थाओं ने भी इस धारा के सशक्त उपयोग के लिए जागरूकता अभियान चलाए।
ध्यान देने योग्य है कि IPC 323 अक्सर अन्य धाराओं — जैसे IPC 324 (हथियार का प्रयोग), IPC 325 (गंभीर चोट) — के साथ जोड़ी जाती है, जिससे केस की प्रकृति और सजा पर व्यापक असर पड़ता है।
न्यायिक ट्रेंड्स दिखाते हैं कि हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार, पारिवारिक हिंसा और छोटी-मोटी मारपीट के मामलों में IPC 323 का हवाला बढ़ा है। अदालतें त्वरित न्याय देने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन केस संख्या की अधिकता के कारण सुनवाई में कभी-कभार लंबा समय लग सकता है।
IPC 323 भारतीय दंड संहिता की एक बुनियादी और जरूरी धारा है, जो समाज में चोट पहुँचाने वाले कृत्यों को दंडित करके नागरिकों को सुरक्षा की गारंटी देती है। इसकी जमानती, गैर-संज्ञेय प्रकृति इसे कानूनी रूप से संतुलित बनाती है। इसके दुरुपयोग के खतरों के बावजूद, IPC 323 ने अपने मूल उद्देश्य — पीड़ितों को त्वरित न्याय और आरोपी को निष्पक्ष प्रक्रिया का अधिकार — को बनाए रखा है। नागरिकों के लिए जरूरी है कि कानूनी जानकारी बढ़ाएं और विवाद की दशा में IPC 323 का विवेकपूर्ण और जिम्मेदारीपूर्ण इस्तेमाल करें।
अधिकतम एक वर्ष की सजा, एक हजार रुपये तक जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है। सजा की अवधि घटना की गंभीरता पर निर्भर करती है।
नहीं, यह गैर-संज्ञेय (non-cognizable) अपराध है, इसलिए पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार नहीं कर सकती। गिरफ्तारी के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत होती है।
सामान्यतः नहीं, यह जमानती अपराध है और अधिकांश मामलों में आरोपी को पहले नोटिस या पेशी पर जमानत मिल जाती है।
यह धारा अक्सर IPC 324 (हथियार का इस्तेमाल) या IPC 325 (गंभीर चोट) जैसे मामलों में जोड़ी जाती है, जिससे केस की गंभीरता बढ़ जाती है।
घरेलू विवाद, सड़क झगड़ा, या साधारण शारीरिक मारपीट के मामलों में IPC 323 का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
कोर्ट में पक्ष रखकर, साक्ष्य व गवाहों के माध्यम से अपना बचाव किया जा सकता है। साथ ही झूठे केसों के लिए कोर्ट फर्जी आरोप लगाने वालों पर भी कार्रवाई कर सकता है।
India’s criminal justice system is built upon countless statutes, but few are as frequently invoked—yet…
India stands as the world's largest democracy, a dynamic system underpinned by a deeply embedded…
Social justice sits at the heart of the Indian Constitution, woven into its fabric through…
India’s federal structure, as designed by the framers of the Constitution, anticipates both cooperation and…
Few decisions in Indian judicial history have transformed the interpretation of fundamental rights as profoundly…
In the digital era, internet freedom—and its limits—are fiercely debated across India. Section 67A of…