भारतीय दंड संहिता (IPC) का हर प्रावधान समाज में अनुशासन बनाए रखने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निर्मित है। धारा 323 इसी मकसद के तहत, शारीरिक चोट पहुंचाने वाले अपराधों को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाती है। अक्सर सामान्य विवादों या झगड़ों में यह धारा प्रयोग में आती है, लेकिन बहुत से नागरिक इसके दायरे, प्रक्रिया, सजा और जुर्माने को लेकर असमंजस में रहते हैं। यह लेख धारा 323 पर पूरी जानकारी देता है—इसकी कानूनी परिभाषा, व्यवहारिक पहलू, अदालती प्रक्रिया और इसका सामाजिक महत्व।
धारा 323 के अंतर्गत “स्वेच्छा से चोट पहुंचाना” (voluntarily causing hurt) अपराध है। इसका सीधा अर्थ है कोई व्यक्ति जानबूझकर और बिना कानूनी कारण के दूसरे को शारीरिक चोट पहुंचाए।
एक स्कूल विवाद के बाद एक युवक ने दूसरे छात्र को जानबूझकर मुक्का मार दिया, जिससे उसे चोट आई। पीड़ित अस्पताल में भर्ती हुआ—ऐसी स्थिति में आरोपी पर धारा 323 के तहत मामला दर्ज हो सकता है।
धारा 323 के तहत अपराध संज्ञेय (cognizable) नहीं है, यानी पुलिस बिना अदालत की अनुमति के सीधे गिरफ्तार नहीं कर सकती है। यह जमानती (bailable) अपराध है और नियंत्रण मजिस्ट्रेट (Magistrate of the first class) द्वारा विचारणीय है।
“भारतीय दंड संहिता का यह प्रावधान इस संतुलन को दर्शाता है कि कानून समाज में अनुशासन कायम रखते हुए, ओवर-पुनिशमेंट (over-punishment) से बचना चाहता है।”
— वरिष्ठ आपराधिक अधिवक्ता, दिल्ली उच्च न्यायालय
धारा 323 के मामलों में समझौते (compounding) की अनुमति है, यानी दोनों पक्ष आपसी सहमति से मामला रफा-दफा कर सकते हैं—अक्सर ऐसे मामलों में अदालत समझौते को बढ़ावा देती है, यदि वह जनहित में हो।
भारत में मामूली झगड़ों, घरेलू विवादों और कई अन्य स्थितियों में अक्सर जानबूझकर चोट पहुंचाने की घटनाएं होती हैं। धारा 323 इन घटनाओं को कानून के दायरे में रखते हुए न्याय की व्यवस्था कायम रखती है।
हाल के वर्षों में, कई राज्यों में धारा 323 के मामले सावर्जनिक विवादों से लेकर व्यक्तिगत शिकायतों तक बढ़े हैं। हालांकि, कई बार इसका दुरुपयोग भी देखा गया है—झूठे मामले दबाव या बदला लेने की नीयत से दर्ज हो जाते हैं। अदालती व्यवस्था वकीलों, पुलिस अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को इन स्थितियों में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए अतिरिक्त सतर्क रहना होता है।
2018 में एक जाने-माने क्रिकेटर के खिलाफ घरेलू विवाद में पत्नी द्वारा धारा 323 के तहत शिकायत की गई थी। यद्यपि बाद में समझौता हो गया, ये घटनाएं दिखाती हैं कि यह धारा आम नागरिक से लेकर सेलेब्रिटी तक, सब पर समान रूप से लागू होती है।
धारा 323 के मामलों में अदालत दोनों पक्षों की परिस्थिति, साक्ष्य और घटना के पर्वेक्ष्य को ध्यान में रखती है।
मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों के बयान अक्सर निर्णायक होते हैं; इसलिए पुलिस जांच की निष्पक्षता विशेष मायने रखती है।
कई कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि धारा 323 के मामलों में त्वरित न्याय और समझौते को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए:
धारा 323 भारतीय दंड संहिता के सबसे व्यावहारिक और सामाजिक रूप से प्रासंगिक प्रावधानों में से एक है। जहां यह पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने का ज़रिया है, वहीं यह समाज में अकस्मात हिंसा की घटनाओं को दंडनीय बनाकर अनुशासन भी स्थापित करता है। समझदारी के साथ इसका प्रयोग, समाज और कानूनी व्यवस्था—दोनों के लिए हितकर है।
Q1: धारा 323 के तहत किन-किन प्रकार की चोटें आती हैं?
साधारण शारीरिक चोटें—जैसे मारपीट, धक्का-मुक्की, घूंसे या किसी प्रकार का छोटा नुकसान—इस धारा के दायरे में आते हैं। गंभीर घाव अथवा असाधारण चोटें अन्य धाराओं के तहत देखी जाती हैं।
Q2: क्या पुलिस तुरंत गिरफ्तारी कर सकती है?
नहीं, धारा 323 गैर-संज्ञेय अपराध के अंतर्गत आती है। पुलिस को गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होती है।
Q3: क्या समझौता संभव है?
जी हां, दोनों पक्षों के आपसी सहमति से अदालत में मामला समाप्त किया जा सकता है। समझौते की प्रक्रिया अदालत की निगरानी में होती है।
Q4: अगर कोई झूठी FIR दर्ज कराए तो क्या प्रावधान है?
झूठी FIR या मुकदमा साबित होने पर संबंधित कानूनी धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है, जिसमें दंड या जुर्माना भी संभव है।
Q5: धारा 323 किन मामलों में ज्यादा लगाई जाती है?
सामान्य झगड़ा, घरेलू विवाद, मोहल्ला झगड़े या सार्वजनिक स्थानों पर मामूली मारपीट के मामलों में यह धारा आमतौर पर लागू होती है।
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